बन्द दरवाज़ा
बन्द दरवाज़ा


निकलना चाहता है उन यादों से जो राहुल को पागल कर रही थी। वहीं काला अंधियारा आज फिर घेरे हुए था ।दर्द को सात तलों के नीचे दबा दो ना,सर उठा कर तीखी किरचें चुभाने आ ही जाता है ।रिसने लगे सारे जख्म नासूर बन चुके थे । प्रीति तडप -तडप कर उस तेज़ाब के धुएँ में गल गई, लाख कोशिशों से भी उसे बचा नहीं पाया ।अपनी अस्मिता बचाने की ये क़ीमत, थप्पड़ का बदला उस नामर्द ने ऐसे लिया कि राहुल की ज़िन्दगी भी विरान कर ख़ुशियों के दरवाज़े सदा के लिये बन्द कर दिये।