ग़ुस्सा
ग़ुस्सा
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विभा की पोस्टिंग किसी पहाड़ी स्थल पर हुई तो ख़ुशी से फूली न समाई कि उसकी इच्छानुकूल रहने को सरकार की तरफ़ से बंगला भी मिल गया। चारों और प्राकृतिक वातावरण और सेब और आड़ूँ के पेड़ भी लगे हुए थे। माँ के बाद खाना बनाने में दिक़्क़त ना हो तो एक औरत को खाना बनाने के लिये रख लिया पूरा दिन दफ़्तर, शाम को घर आकर जब गर्म खाना मिलता तो सारी थकान दूर हो जाती।
कमली तुमने जब भी छुट्टी करनी हो तो मुझे पहले बताना कहीं ऐसा ना हो तुम्हारे चक्कर में मैं भूखी भी रहूँ और दफ़्तर भी समय पर ना जा पाऊँ।
आज कमली आई नहीं अचानक छुट्टी करते देख विभा का पारा सातवें आसमान पर पर जा पहुँचा, कितना भी कर लो इनके लिये लेकिन इन्होंने ने अपनी औक़ात दिखा ही देनी है। कितना कुछ देती हूँ मैं कमली को फिर भी इन लोगों को अपना काम सही नहीं करना होता। बड़बड़ाते हुए दफ़्तर भी लेट पहुँची विभा। अगले दिन कमली आई और चुपचाप खाना बनाने लगी तो विभा ग़ुस्से से प्रेशर कुकर की तरह फट पड़ी, कोई ज़रूरत नहीं खाना बनाने की कल भी भूखी रही थी तो आज भी रह लूँगी, मर नहीं जाऊँगी अगर तुम खाना बनाने नहीं आओगी।
आई क्यूँ नहीं कल ?
वो मेरा बेटा कई दिनों से बीमार था और सुबह होते ही चल बसा, बस उसी के सब कामों में रात हो गई। इसलिए नहीं आ पाई लेकिन मैडम आप मुझ पर विश्वास तो रखती। मैं कभी विश्वास नहीं तोड़ती।
इतना सुनना था कि सारा ग़ुस्सा प्रेशर कुकर की हवा बाहर निकलने जैसा एकदम फुस्स हो गया।
विभा का ग्लानि के मारे बुरा हाल था कि बेटे के मरने के बाद भी ड्यूटी करने के लिये अगले ही दिन कमली काम पर आ गई और उसने बिना सोचे समझे जाने क्या-कुछ नहीं कह दिया कमली को।