प्रतीक्षा
प्रतीक्षा


"कान्हा ओ कान्हा कहाँ छुपे हो ?क्यूँ ले रहे हो इतनी परीक्षा ।और कब तक ?" मन्दिर में बैठ पुत्र के लिये मंगलकामनाएँ करते हुऐ विभा उलाहना दे रही थी “कृष्णा “को और बहुत दिनों की लाखों कोशिशों से खुद को जाने कैसे रोके हुऐ थी लेकिन आज विभा फूट फूट कर आख़िर रो ही दी ।बेटे की उदास आँखें उसे बहुत ही व्यथित कर रही थी । जब से अनुराग विदेश गया है तब से अपने दिल को , कहीं दिमाग़ के किसी कमरे में बन्द करके के बैठी थी । सम्पूर्ण लाकडाउन की तरह । रोज़ खुद को सख़्ती से आर्डर देती कि “नही तुम बेटे के लिये उदास नहीं होगी क्यूँकि यदि तुम यू यहाँ बिखर गई तो वहाँ दूर विदेश में इस मुश्किल स्थिति में फँसे बेटे का मन भी तो उदास होगा । तुम्हें तो खुद को मज़बूत रख सबका हौसला बढ़ाना है । मज़बूत हौसले से ही ये कठिन दौर पार होगा । क्यूँकि तुमसे ही पूरे परिवार की मुस्कुराहट है। लेकिन आज विभा एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद खुद को रोक नहीं पाई । उसकी ये प्रतिक्षा हर दिन बढ़ती ही जा रही थी .....