अब यूं ही कविता सोच लेता हूं।
अब यूं ही कविता सोच लेता हूं।
अब यूं ही कविता सोच लेता हूं मैं,
जाने कहां से शब्दों को खोज लेता हूं मैं।
अब तो खूब है बोलती मेरी बच्ची,
बातें वो करती है सारी सच्ची,
कविता भी उन से बन जाती है अच्छी,
बस यूं ही शब्दों से भावों को जोड़ देता हूं मैं।
जब भी गुस्से से घर में पत्नी चिल्लाई,
उसने भी है कविता की याद दिलाई,
उस फटकार से भी प्यार को निचोड़ लेता हूं मैं,
बस यूं ही कविता की लय को मोड़ लेता हूं मैं।
आओ टटोलें सोई अन-सोई रातों को,
मां बाप की भूली बिसरी बातों को,
उन बातों से दुलार को सोख लेता हूं मैं,
बस यूं ही शब्दों में उसको रोक लेता हूं मैं।
अब तो याद करना बनता है यारों को,
बेबस दिल के दिवालिया किरायेदारों को,
कभी कहते वाह कभी नहीं है कुछ खास,
बस यूं ही बकवास में छुपे एहसास टोह लेता हूं मैं।
कभी सुनो ध्यान से उन अमराइओं को,
जहां छुप काली कोयले हैं कूकती,
उस सूनी दुनिया में हैं जान वो फूंकती,
बस यूं ही उन सुरो को शब्दों में पोह लेता हूं मैं।
जाने कहां से शब्दों को खोज लेता हूं मैं,
अब यूं ही कविता सोच लेता हूं मैं।
