मेरी तनहाई ।
मेरी तनहाई ।
यहां खुशियां कहां
यहां ग़म का आना जाना
मूसलसल रहता है।
मुद्दतों से रोशनी की कमी है
अंधेरों के आंगन में
मगर कोई शम्मां भी यहां
अरसे से जलाया कहां किसी ने।
यहां के मौसम बे- रंग हैं
और ना जाने कैसी
ख़ामोशी है हर तरफ,
कि गुज़रता हुआ भी कोई
खौफ से आता नहीं यहां।
मुश्किल से समझ आता है
ज़माने को मेरा होना
इस लिए भी कोई
ठहरता नहीं यहां।
उलझी हुई यहां
तमाम पहलियां हैं
है बस कहां की कोई आए
और उलझ जाए यहां।
छोड़ो रेहने दो तन्हा मुझे
मेरी यादों के सहारे
यूं समझुूंगा ये ज़िन्दगी एक क़ैद है
और मैं एक क़ैदी हूं यहां।