रेत के किले
रेत के किले
चले दूर तक हर सिलसिले
रहें दरमियान फिर भी फ़ासले
मैंने जितने भी फ़तह किये
वो रेत के निकले किले
कहीं दूर आसमानों में
होती हैं ये साज़िशे
किसे क्या मिला जहां में
यें वहीं के हैं सारे फैसले
मैंने जितने भी फ़तह किये
वो रेत के निकले किले
हमें नाज़ था, गुमान था
जो मेरा सबसे क़ीमती सामान था
वो हौसले ऐसे गले,
जैसे पानी के बुलबुले
मैंने जितने भी फ़तह किये
वो रेत के निकले किले
यही रस्म है, दस्तूर है
यही इस जहां का क़ानून है
यहाँ सब मिलेगा जहान में
सिवाय उसके जिसकी हैं ख्वाहिशें
मैंने जितने भी फ़तह किये
वो रेत के निकले किले
कुछ पा लिया कुछ खो दिया
इसका करें अब क्या गिला
वो बात लेकिन और है,
जो मिल गया वो था रास्ता
जो ना मिली थीं वो मंज़िले
मैंने जितने भी फ़तह किये
वो रेत के निकले किले।