मैं पढ़ूंगी
मैं पढ़ूंगी
भर रोशनी उस कागज पर
आई जो घूमती चिट्ठी द्वार
सब थे अनपढ़ निरक्षर
कैसे जाने उस में छिपे भेदों के तार
जाते थे किसी को ढूंढने गांव के पार
जो पढ़ दे उनकी चिट्ठी
बताएँ अपनों का हाल और प्यार
पर उन्हें खबर ना थी घर में जो आई है बहू
थी वह पढ़ी-लिखी साक्षर शिक्षित हुबहू
बोली ला बाबू पढ़ दूँ मैं चिट्ठी
इसमें छिपे तुम्हारे अपनों का हाल कहूँ
धर फर्राटे से पढ़ दी चिट्ठी
बताई उसने उस में जो थी हर बात छुपी
सुनकर सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ आई
उमंग उल्लास का था ना ठिकाना तरंग सब पर छाई
आखिरी में उसने यह संदेश दे डाला
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
भारत के इस नारे को दोहरा डाला
बात यह गांँव वालों के समझ में आई
बेटी को शिक्षित करने की अब उन्होंने कसम है खाई
बाबा मैं पढ़ूंँगी मैं पढ़ूँगी हर घर से आवाज आई
शिक्षा की यह नई लहर पूरे गांव में दौड़ आई।