वो स्त्री
वो स्त्री
अनगिनत शब्दों के प्रहार
लात और घूसों की मार
थे शामिल उसके
नित्यकर्म में,
घर की चारदीवारी में
रोज गूँजती
उस कायर शेर की दहाड़
सब कुछ सहती वो स्त्री,
वो करती चुपचाप,
अपने काम
जब कहीं मिलता,
कोई कोना,
चुपचाप चार आँसू बहाकर
आ जाती वापस
खामोशी बन गई
उसका हथियार,
क्योंकि
उसके बच्चे थे,
उसकी कमजोरी
आज रात बन्द हो गया
उस कायर का गुंजन,
उसकी हृदयघात से मौत हो गई
घर में कोहराम मचा है
नाते-रिश्तेदारों का,
पर वो खामोश थी,
सबने रुलाना चाहा उसको
सदमें से उबारना चाहा
वो फिर भी खामोश रही
सब थक हार गये
और कहने लगे,
सदमा गहरा लगा है
जवानी में पति गुजर गया
वो छुपा गयी सबसे
अपने आँखों की चमक
आज मिल गयी उसे
पतिश्राप से मुक्ति।।