Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

वो स्त्री

वो स्त्री

1 min
275


अनगिनत शब्दों के प्रहार

लात और घूसों की मार

थे शामिल उसके

नित्यकर्म में,


घर की चारदीवारी में

रोज गूँजती

उस कायर शेर की दहाड़

सब कुछ सहती वो स्त्री,


वो करती चुपचाप,

अपने काम

जब कहीं मिलता,

कोई कोना,


चुपचाप चार आँसू बहाकर

आ जाती वापस

खामोशी बन गई

उसका हथियार,


क्योंकि

उसके बच्चे थे,

उसकी कमजोरी

आज रात बन्द हो गया

उस कायर का गुंजन,


उसकी हृदयघात से मौत हो गई

घर में कोहराम मचा है

नाते-रिश्तेदारों का,

पर वो खामोश थी,


सबने रुलाना चाहा उसको

सदमें से उबारना चाहा

वो फिर भी खामोश रही

सब थक हार गये

और कहने लगे,


सदमा गहरा लगा है

जवानी में पति गुजर गया

वो छुपा गयी सबसे

अपने आँखों की चमक

आज मिल गयी उसे

पतिश्राप से मुक्ति।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy