गजल
गजल
जमाना बदल गया रिश्ते बदल गये।
गैरों की छोड़िए अपने क्यूँ गये।।
जो कभी खाते थे एक ही थाली में,
वो फ़र्ज़ से जाने क्यूँ निकल गये।।
आँगन की दीवार सिसकती देखो,
सुनी आह दिल जाने क्यूँ दहल गये।।
न अपनापन और नेह बंजर है यारों,
आँसुओं से पत्थर क्यूँ पिघल गये।।