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Aarti Sirsat

Tragedy

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Aarti Sirsat

Tragedy

"आखिर क्यों "

"आखिर क्यों "

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तोड़कर उस डाली से फूल

क्यों वो लोग अपने घर ले जाते हैं...!

होकर जुदा अपनी परछाई से

भला किस तरह वो माँ बाप रह पाते हैं...!!

सोचकर उस बात को

लबों पर लाना हम तो घबरा जाते हैं...!

ज्यादा बोलकर क्यों वो

अपनी सीमा तोड़ जाते हैं...!!

शिक्षा का अर्थ, हैं नहीं

किसी जात पात से,

फिर भेदभाव की शिक्षा

कहा से वो लाते हैं...!

सुनकर किसी गैर की बात को

अपनों से नाता वो तोड़ जाते हैं...!!

छाया में बैठकर क्यों वो

उस पेड़ की कीमत भूल जाते हैं...!

लेकर हाथों में अपने कुल्हाड़ी

रोज रोज दर्द देने आ जाते हैं...!!

बनावट तो एकसमान हैं सभी की,

फिर ये कौन सी छाप धर्म की

अपने शरीर पर ले आते हैं...!

देखतें हैं प्रतिदिन

खुद को दर्पण में,

क्या वो कभी एक दिन

खुद को खुद से मिलाते हैं...!!

पार कर इंसानियत

की सलतनत को,

ये ऊच निच का जलजला

कहा से लातें हैं...!

बसें हैं परमात्मा तो प्रकृति

के कण कण में,

फिर क्यों "आरती " लेकर

मंदिरों और मजारों में वो जाते हैं...!!



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