दीवानगी
दीवानगी
परछाइयों को पकड़ने की
ये कैसी ज़िद मेरी...
तब,जबकि जानती हूँ
ये छद्म है
पर ये भी तो कहते हैं लोग
ये दुनिया माया है...
छद्म है, तो फिर
ये रिश्ते कैसे!
ये समाज कैसा और
ये भावनाओं का प्रवाह कैसा!
यदि ये दुनिया छद्म ही है,और
सब जुड़ाव एक बंधन, जिसमें
हम बंध जाते हैं,
बंधना चाहते हैं और फिर
मुक्ति का राह
ढूंढते हैं,तो
ये सब क्यों!
छद्म ही तो है ये सब...
फिर क्यों
मंदिर-मस्जिद बनाने की और
तोड़वाने का जुनून
फिर क्यों उन बातों के पीछे
भागना, जो है ही नहीं...
यदि सब छद्म है तो
मस्तिष्क पर उसकी तस्वीर
क्यों बन जाती,और
दृष्टिपटल पर नाचने क्यों
लगती है
कानों में क्यों गूँजने लगते स्वर
जो आहद होकर भी
अनहद से लगने लगते,और
जीवन का माधूर्य दे जाते हैं
एक स्वर लहरी ऐसी भी
हो जाती है कि
तन-मन में एक थिरकन सा
महसूस होने लगता है.
यदि सब कुछ छद्म ही है तो,
ये नदी, झरने,धरा और
पर्वत क्यों हैं !
ये आकाश,मेघ हवा क्यों है?
बिजली की कड़क क्यों और
मेघ की गर्जना कैसी?
हवाओं से छुअन का ये एहसास
कैसा, कि कभी लगे
कोई पीछे से आकर पीठ पर ज़ोर
से 'धप्पा' कह दे, या
किसी प्रेयसी को बिछुड़न में
भी प्रेषित करे संदेशा
या एक सिसकारी की आवाज़
गवाही दे किसी के खो जाने का
और शरीर तत् क्षण एक
कम्पन-सी अनुभूति करने लगे
सब छद्म है तो क्यों कोई वाद है,
अनुवाद है, विवाद है और
अपवाद है ! क्यों, आखिर क्यों?
और फिर क्यों यह छद्म ही
जीवन का यथार्थ है...
और यदि यही यथार्थ है, तो
परछाइयों की तरफ मेरा
आकृष्ट होना, क्यों झूठ है
और जो झूठ है तो फिर
सत्य क्या!
किन बातों में उलझी-उलझी सी
रहने लगी हूँ
क्यों नहीं मानती कि ये मनुष्य ही
यथार्थ हैं, यह प्रकृति भी
यथार्थ, एक सोच है
मनुज का मस्तिष्क पटल पर
जो नित्य प्रयोग है कर रहा
एक बिंदु को सिंधु में परिवर्तित
करने की लालसा और उसके
परिणाम की जिज्ञासा
ही एक सोच, एक परिकल्पना
और उसे कल्पना में ले आती है
मूर्त बना यथार्थ की अनुभूति
दे जाती है और,
मनुष्य उसमें अपनी सोच से
रंग भरता है, संगीतबद्ध करता है
और उसी पर आधारित जीवन संगीत
जो नवरसों से होकर तांडव भी
कराती है
इतना कुछ के बाद भी क्यों
हम 'छद्म' कह यथार्थ से भागते हैं
नहीं मैं छद्म कह कर यथार्थ से
नहीं भाग सकती
परछाई के पीछे भागना मेरा
ये छद्म को तलाशना हो नहीं सकता
शायद ये एक रास्ता हो,
इसी बहाने से यथार्थ का एक सफर हो
और, सच को तराशने की
हिम्मत, जिसे लोग और समाज
समझते हों उसकी 'दीवानगी'
उसकी दीवानगी