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मिली साहा

Tragedy Classics Inspirational

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मिली साहा

Tragedy Classics Inspirational

कथा माता सती भगवान शिव की

कथा माता सती भगवान शिव की

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सत्य युग की कथा है ये भगवान शिव और माता सती की,

आदि शक्ति है माता सती अभिन्न अंग हैं भगवान शिव की,

भगवान शिव परम तत्व तो आदिशक्ति उनकी परम शक्ति,

एक दूसरे के बिना अधूरे हैं दोनों, अधूरी है ये सम्पूर्ण सृष्टि,


हर युग में शिव का है इंतजार तो शक्ति की भी प्रेम परीक्षा,

शिव सती विवाह से आने वाली पीढ़ी को मिली गूढ़ शिक्षा,

कथा ये उस समय की ब्रह्मा जी के पुत्र हुआ करते थे दक्ष,

प्रजा के राजा थे वो प्रजापति भगवान विष्णु के परमभक्त,


प्रजापति दक्ष की सोलह बेटियों में से एक थी माता सती,

घोर तप से दक्ष को आदिशक्ति की पुत्री रूप में हुई प्राप्ति,

धन्य प्रजापति दक्ष, गुणवान अलौकिक दिव्य पुत्री पाकर,

माता प्रसूति पिता दक्ष की छांँव में, बड़ी हुई सती पलकर,


विवाह योग्य जब हुई सती, ब्रह्मा ने दक्ष को दिया आदेश,

करा दो विवाह सती का उनसे, जो हैं देवों के देव महादेव,

चाह कर भी टाल ना सके दक्ष, भगवान ब्रह्मा का आदेश,

माता सती संग तब परिणय सूत्र में बंधे कैलाशपति महेश,


शिव शंकर से सती का विवाह दक्ष नहीं चाहते थे कराना,

इस विवाह से तनिक भी नहीं थे प्रसन्न, बैर उनका पुराना,

ये विवाह स्वयं माता सती के लिए भी इतना सरल न था,

शिव को प्राप्त करने को कठिनतम तप सती ने किया था,


विवाह उपरांत जब दक्ष ने किया महासभा का आयोजन,

सभा में पहुंँचे ब्रह्मा विष्णु महेश सहित सभी देवी देवगण,

तभी पधारे सभा में प्रजापति सम्मान में सब खड़े हो गए,

ब्रह्मा, विष्णु, महेश को खड़ा ना देख दक्ष क्रोधित हो गए,


ब्रह्मा जी पिता प्रजापति थे और आराध्य विष्णु भगवान,

किन्तु दामाद थे शिव उनके फिर क्यों नहीं किया सम्मान,

इस प्रसंग से सभा में इतने क्रोधित हो गए प्रजापति दक्ष,

अहम में ईश्वर को ही अपमानित करने लगे सबके समक्ष,


समझाना चाहते थे वो, तोड़ना चाहते अहंकार का टीला,

समझ न सके दक्ष, स्वयं भगवान शिव की थी यह लीला,

अहंकार लिप्त दक्ष के मन घर कर गई बदले की भावना,

उचित समय की करने लगे प्रतीक्षा, बदला था उन्हें लेना,


कोई अवसर नहीं छोड़ते शिव को अपमानित करने का,

अज्ञानी दक्ष को आभास नहीं आमंत्रण है ये विनाश का,

तब एक दिन प्रजापति ने, एक महायज्ञ की घोषणा की,

योजना बना ली दक्ष ने भगवान शिव से बदला लेने की,


भेजा गया निमंत्रण ब्रह्मा विष्णु, सभी देवी देवगण को,

किंतु कोई आमंत्रण न भेजा उन्होंने सती और शिव को,

माता सती थी पिता के घर हो रहे महायज्ञ से अनजान,

जब सभी यज्ञ में उपस्थित होने को कर रहे थे प्रस्थान,


जिज्ञासा हुई मन में जानने की कहांँ जा रहे हैं देवगण,

शिव बोले तुम्हारे पिता ने किया है, यज्ञ का आयोजन,

आश्चर्य हुआ माता सती को, नहीं मिला कोई निमंत्रण,

फिर भी हठ करने लगी जाने को, चिंतित हुए भगवन,


बहुत समझाया शिव ने वहांँ हमारा जाना नहीं उचित,

जहांँ आने के लिए, हमें किया ही नहीं गया हो सूचित,

व्याकुल हुई माता सती पार हो गई हठ की पराकाष्ठा,

मजबूर होकर भगवान शिव को भी, देनी पड़ी आज्ञा,


यज्ञ में पहुंँची सती, सभी देवताओं को देख चौक गई,

स्वामी का ऐसा अपमान देख, दक्ष से प्रश्न करने लगी,

क्यों नहीं आपने अपने जमाता को आमंत्रण है दिया,

पुत्री हूँ आपकी फिर क्यों आपने ऐसा व्यवहार किया,


दक्ष बोले देख अपनी बहनों को, देख उनका सम्मान,

क्रोधित होकर दक्ष करने लगे शिव सती का अपमान,

स्वयं को देख, क्या रखा है तुने अपना हाल बनाकर,

और तेरा पति घूमता है सदैव, तन में भस्म लगा कर,


भूत पिशाच कीड़े मकोड़ों के साथ, है वो रहने वाला,

आखिर क्या ही दे सकता है तुझे, वन में घूमने वाला,

ये महासभा मेरा गौरव है मेरी शान है मेरा है सम्मान,

उसे आमंत्रण देने से तो, इस सभा का होता अपमान,


स्वामी का अपमान देख, क्रोधित हो गई माता सती,

ललकारने लगी दक्ष को, लेकर स्वरूप आदि शक्ति,

सहन न कर पाई पति का ऐसा अपमान माता सती,

उसी महायज्ञ की अग्नि में फिर दे दी अपनी आहुति,


शिव को पता चला, क्रोध में रूप बना विध्वंशकारी,

जटाओं से उत्पन्न हुआ तभी, रूप वीरभद्र अवतारी,

प्रजापति के अहंकार के विनाश की आई अब बारी,

वीरभद्र रूप है भगवान शिव का, महा विध्वंसकारी,


दक्ष का वध करने को जैसे ही वीरभद्र अग्रसर हुआ,

त्राहिमाम करता दक्ष, भगवान विष्णु के समक्ष गया,

किंतु शिव जी के क्रोध के आगे श्रीविष्णु भी लाचार,

रक्षा न कर पाए दक्ष की, तब वीरभद्र ने किया प्रहार,


सर काट कर प्रजापति का, उसी यज्ञ में जला डाला,

माता सती के शरीर को भगवान शिव के पास लाया,

माता सती के मृत शरीर को देख बेसुध हुए भगवान,

वर्षों तक भ्रमण करते रहे सृष्टि का लेकर तन बेजान,

असंतुलित हो गया जिससे संपूर्ण सृष्टि का संचालन,

चिंतित हुए भगवन ब्रह्मा विष्णु और सभी देवतागण,

अंत में देवगण उपाय हेतु, आए श्री विष्णु की शरण,

तब सृष्टि पून: संचालित करने जागृत किया सुदर्शन,


तब माता सती के मृत देह के, किए टुकड़े इक्यावन,

जहांँ-जहांँ गिरे अंश, शक्ति पीठ बने माता के पावन,

हिंदू धर्म में इन शक्तिपीठों का,बड़ा ही अहम स्थान,

माता शक्ति के साथ हैं विराजित स्वयं शिव भगवान,


सृष्टि को शिक्षा देने को, थी लीला भगवान शिव की,

जय हो माता आदिशक्ति, जय हो भगवान शिव की।


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