दहेज प्रथा
दहेज प्रथा
आज भी समाज में क्यों हो रहा है यह गंदा व्यापार,
मुझ अबला नारी पर दहेज का हो रहा ये अत्याचार,
धन के भूखे ये इंसान क्यों खुले आम सौदा कर रहे,
न होती इन्हें संतुष्टी बहु को अग्नि के हवाले कर रहे,
स्वार्थ भरी कुरीतियाँ जाने इस जग ने क्यों बनाई है,
अपनी ही बहु - बेटियों को दहेज की बलि चढ़ाई है,
उसकी मासूमियत को दौलत के तराजू पर तौला है,
देखकर अत्याचार ये समाज भी कहाँ कुछ बोला है,
संकुचित मानसिकता, लालच सर चढ़कर बोला है,
उसकी मासुमियत को दहेज की आग में ढकेला है,
रोती बिलखती हाथ जोड़ खड़ी बंद करो अत्याचार,
मेरे पिता हैं मजबूर न दे सकेंगे तुमको मोटर - कार,
नई-नई फरमाइशों से, न मेरे पिता को सताया करो,
पिता को बताने से पहले ,तुम मुझे तो बताया करो,
एक बेटी आंखों में अश्रु लिए कर रही विनती अपार,
जख्मों से भरा है देह मेरा अब तो रोक दो ये व्यापार ,
जिसका डर था वही हुआ बेटी उसकी चीख रही थी,
दहेज की जलती हुई आग में जिंदा वो तड़प रही थी,
बचा ले बाबुल मेरे ये अग्नि मुझको जिंदा जला रही है,
जिसको माना था माँ मैंने वो खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही है,
जो बना था मेरा हमसफ़र उसने ही अग्नि में झोंक दिया,
गला दबाकर मुझको उसने जलती अग्नि में छोड़ दियाI
