बचपन
बचपन
दिल के दरवाजे पर आज फिर दस्तक देता है वो बचपन
कहता है चल ले चलूं तुझे फिर से उन गलियों की सैर कराने
जहां भाग भाग कर ना थकते थे तेरे कदम
जहां ना ढाती थी पहरें भी सीतम
जहां शामों-शहर लगती थी बड़ी सुहानी
जहां ना दर्द की खबर, ना था मुश्किलों का कहर
कितना मासूम, कितना नादान सा था वो बचपन
मिट्टी की सुराही सा था वो बचपन
धूप में खेलता, बारिश में भीगता हुआ सा वो बचपन
बेफिक्र पानी में गोते लगाता हुआ वो बचपन
चोट लगने पर मां के सीने में खुद को छुपाता हुआ सा बचपन
फिर दो पल में सब भूल खिलखिलाता हुआ सा वो बचपन
छुप छुप कर वो पेड़ों से आम चुराता हुआ सा बचपन
गलियों में गिल्ली डंडे से खेलता हुआ वो बचपन
प्यार और दुलार से घिरा हुआ सा वो बचपन
मां की आंचल तले अपनी दुनिया तलाशता हुआ सा बचपन
गुड्डे गुड़ियों की कहानी में खोया हुआ सा बचपन
दोस्तों की दोस्ती में मदमस्त वो बचपन
परियों के देश में रहता था वो बचपन
उड़न खटोले में उड़ा करता था वो बचपन
रुठता मनाता, पल भर में मान जाता था वो बचपन
अपनी अठखेलियों से सबका मन लुभाता था वो बचपन
अपनी शरारतों की लड़ियों से दिवाली मनाता हुआ वो बचपन
यारों की टोली संग होली में गुलाल उड़ाता हुआ वो बचपन
रात के अंधेरे में जुगनूओं के पीछे भागता हुआ सा वो बचपन
दिन में सूरज की किरणों सा चमचमाता हुआ वो बचपन
मां की लोरी सुन सुकून से सोता था बचपन
फिर सवेरे चिड़ियों सा चहकता था वो बचपन
ना कोई कलेश , ना कोई इर्ष्या, बातों का सच्चा और मन का भोला सा वो बचपन
संसार के भेद-भाव से परे, एकता का गुणगान गाता हुआ सा वो बचपन
हर दिन पलकों पर नए सपने संजोता हुआ सा वो बचपन
अपनी ही रवानी में मस्त वो बचपन
छोटी छोटी ख़ुशियों का जश़न मनाता हुआ वो बचपन
हर पल मुस्कुराता हुआ सा बचपन
घर के आँगन में अब भी गुजंता है वो बचपन
बहुत याद आता है वो बचपन
कभी आंखे नम कर जाता
तो कभी लबों पर हंसी छोड़ जाता है वो बचपन
काश कोई लौटा दे वो बचपन!
काश कोई लौटा दे वो बचपन!