यज्ञ और महायज्ञ
यज्ञ और महायज्ञ
मानव ने जब,
स्वयं के प्राणों को सींचा।
वो यज्ञ कहलाया।
ईश्वर ने जब समस्त प्राणों को सींचा।
वो प्राण यज्ञ महायज्ञ बन पाया।
किसान ने बोया अन्न,
मेहनत से, एक यज्ञ रचाया।
धरती को सींचा, जीवन से,
अन्न से, जीवन को बचाया।
पेट पाला जीवो का,
मेहनतकशी का होम,
वो अन्न यज्ञ कहलाया।
ईश्वर ने दे कर, तृण-तृण को अन्न।
उसे अन्नपूर्णा महायज्ञ बनाया।
गुरू ने दिया,ज्ञान मानव को।
जीवन का सार तत्व समझाया।
जिसने समझ लिया, उस सत्य को।
स्वयं को होम कर,
ज्ञान-यज्ञ बनाया।
ईश्वर ने दे कर, चार -वेद।
उस ज्ञान यज्ञ को महायज्ञ बनाया।
मां -बाप ने, देकर संस्कार।
जब जीवन को,
एक आदर्श बनाया।
स्वयं को होम किया कर्तव्य -पथ पर।
परिवार -समर्पण का यज्ञ रचाया।
संतान ने कर सेवा,
फिर उस यज्ञ को, महायज्ञ बनाया।
सबने अपने -अपने कर्मो से,
जीवन -यज्ञ को महायज्ञ बनाया।
