शांत चन्द्रमा
शांत चन्द्रमा
शांत चन्द्रमा
उठ रहा आकाश माँ
फैलाये बाहें धरतीपटल पर
रेंगता मानो चांदनी के बल पर।
वो भी मुस्कुरा रही
जिह्वा होठ में दबाएं दिखा रही
अपनी शालीनता और प्यार की एक पहचान
वो भी रखकर आन बान ओर शान।
तारे टिमटिमा रहे थे उसकी आड़ में
लड़ा रहे थे लाड उसकी गोद में
वो भी आँख मोद लेते तो कभी हँस लेते
अपनी ख़ुशी का आगाह धीरे से कर लेते।
एक ही चादर है
सब रहते भीतर है
किसीका चलन ज्यादा कम नहीं
सब की खूबसूरती की बोलबाला यहीं।
एक ही चादर है
सब रहते भीतर है
किसीका चलन ज्यादा कम नहीं
सब की खूबसूरती की बोलबाला यहीं।
चाँद है बड़ा भाई
सब की आँख उसपर ललचाई
पर है बड़ी चाह रखने वाली परख
प्यार करने वाले कभी नहीं बनते मूरख