कपड़े अगर बोल पाते...
कपड़े अगर बोल पाते...
मैं लम्हें पहनता हूँ
कुछ ऊनी, कुछ सूती के,
रंग-बिरंगे चटकदार,
कुछ नए, कुछ पुराने,
कुछ थोड़े फटे से,
सीलकर जिन्हें मैं
काम चलाता हूँ.
कुछ सस्ते कुछ ब्रांडेड
कुछ बेढंगी-सी
जो बिलकुल नहीं जंचते
हैं मुझपर
कुछ दिए गए तोहफे,
कुछ मांगा गया उधार,
कुछ भूल से गए,
जो मिल जाते हैं अनायास
कुछ खूंटी पर पड़े उपेछित
कुछ सँभालकर संदूक में रखे हुए
कुछ अपनी जगह की
प्रतीक्षा में बिखरे पड़े हैं
अगर मैं लम्हें बुनूँ
वो मेरे कपड़े बन आते हैं
अगर कपड़े बोल पाते
तो ज़रूर लम्हों में सिमट आते"