जश्र-ए-नया साल
जश्र-ए-नया साल
लो अब आ गया फिर से नया साल;
"नववर्ष के संकल्प" का वही बवाल !
मन में आशाओं का उठा नया उबाल,
क्या इस वर्ष होगी लक्ष्यपूर्ति, वही सवाल;
उफ क्यूँ फिर आ गया ये नया साल !
बढ़ता हुआ यह कमर का घेरा,
वजन घटाने का पुराना ध्येय मेरा,
लगता है ये सुखद स्वप्न रहेगा अधूरा !
क्या फिर रहेगा तोंद का वही हाल ?
उफ क्यूँ फिर आ गया ये नया साल !
विदेश भ्रमण की इच्छा क्या होगी पूरी,
कश्मीर जाए या फिर घूमें कन्याकुमारी,
क्या कम होगी पर्यटन से दिलों की दूरी ?
या फिर से मिलेगी घर की ही दाल;
उफ क्यूँ फिर आ गया ये नया साल !
सोचती हूँ इन्हें बढ़ाऊँ या करूँ काला,
रंगादूँ इन्हें सुनहरा लाल, हरा या पीला;
या कोई आधुनिक कट करूँ रंगीला;
पर सर पे बचे हैं अब दो ही बाल;
उफ क्यूँ फिर आ गया ये नया साल !
बढ़ती हुई उम्र ना बना दें दादी,
मुश्किल से मिली है हमें ये आज़ादी;
स्मार्ट बनूँ छोड़ के ये वेषभूषा सादी,
बदलेगी क्या इस उम्र में मेरी चालढ़ाल ?
उफ क्यूँ फिर आ गया ये नया साल !
क्यूँ ख्वाहिशों पे बांधे तारीखों का सेहरा ?
पल दो पल की ज़िंदगी हैं जी ले ज़रा,
क्या ये वक्त कभी है किसी के लिए ठहरा,
थाम लो ये लम्हें, तभी हम होंगे खुशहाल;
रोक लो इसे, ना बीत जाए ये नया साल !