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खोया बचपन

खोया बचपन

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खुला आसमाँ और

चाँद की पहरेदारी है

आज तो यही चादर

और यही चिंगारी है


ये उम्र में ज़रा कच्चे हैं

पर समझ के पक्के हैं,

चाँद की गोद में सो गये,

गरीब के बच्चे हैं


अच्छा होता अगर

भूख मिट जाती

ख़्वाबों में रोटियाँ नहीं,

परियाँ आती


हाथ फैलाते नहीं,

मासूमों की ये खुद्दारी है

झोला टाँगें निकले हैं,

ये कैसी ज़िम्मेदारी है


तसल्ली है जेब में

ईमान के दो-चार सिक्के हैं

वरना ज़माने में पेट पालने के

गलत भी तरीके है


कूड़े के समंदर में

अगर मोतियाँ मिल जाती

माँ दर्द-भरी सिसकियाँ नहीं,

लोरियाँ सुनाती


तलवे पैर के चूमती है,

आज धूप अंगारी है

टूटी चप्पल पहनने की

आज भाई की बारी है


मेहनत के पसीने कमीज़ से

अब तक नहीं सूखे हैं

फिर भी भूख पूछती है,

आज कितने निवाले तेरे हैं


बेरहम ज़िन्दगी अगर

बचपन छीनकर न ले जाती

नाज़ुक कंधों पे ज़िम्मेदारियाँ नहीं,

मस्तियाँ गुदगुदाती...!


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