इच्छामृत्यु
इच्छामृत्यु
सुनो ! वो पटरियों पर सोने नहींं आये थे
वो हताश थे, निराश थे तुम्हारे फैसलों से
लेकिन वो तुम्हारे दरवाजे पे रोने नहीं आये थे।
चेहरे उदास थे उनके और पैरो में जूते नहीं थे,
आँखे पथराई थी उनकी ,लेकिन हांथो में पत्थर नहीं थे
वो भूंखे थे ,प्यासे थे परेशान थे वो,
लेकिन ये दर्द वो तुमसे बताने नहीं आये थे।
बड़े आराम से तुमने तो कह दिया
वो पटरियों पर सोने चले आये थे
वो हर पल मर रहे थे,इसलिए मरने चले आये थे
कान खोल कर सुनो लो, खबर बेचने वालों,
वो अधमरे लोग, पटरियों पर सोने नहीं आये थे।
उनकी आंखों में बूढ़ी अम्मा को देखने की चाहत थी
द्वारे पर बैठी बीबी को चूमने की चाहत थी
उन्हें बेटों को बॉटनी थी शहर से लाई टॉफियां
बिटिया को देनी थी पढ़ने को नई कापियां
एक आदेश पर तुम्हारे, वो उनकी छोटी सी दुनिया का
टूटा हुआ आसमान तुम्हे दिखाने नहीं आये थे।
वो इतने बिखरे हुए लोग थे कि मरने चले आये थे
कान खोल कर सुनो लो, ऐ खबर बेचने वालों,
वो अधमरे लोग, पटरियों पर सोने नहीं आये थे।
वो जिंदगी से हारे, बिखरते हुए लोग थे
भूंख के तपडते, बिलखते हुए लोग थे
वो कामकाजी लोग थे बेकार होकर आये थे,
वो सड़कों पर टूट कर लाचार होकर आये थे,
उनके चेहरों में गांव तक जाने का हौंसला था,
भले टूटी हुई चप्पल थी, मीलों का फांसला था।
एक आखिरी उम्मीद ले के वो ना उम्मीद लोग
अपनी पुरखो की जमीनों से लिपटने चले आये थे
तुमने तो बड़ी बेशर्मी से कह दिया चंद लोग
पटरी में सोने चले आये थे
क्या करे कि एक हद तक ही शरीर साथ देता है
क्या करें कि एक हद तक ही काफ़िला हाथ देता है,
जिन पर नहीं थे मरने के लिए भी पैसे,
उनकी आत्माएं देखो घुट घुट के मरी कैसे
सोचो वो कितने ज्यादा मजबूर हो गए होंगे
कितनी रातें वो बेचारे चुपचाप रोये होंगे
जब उनका उठ गया होगा खुद पर से भरोसा
वो मरने के लिए पटरियों पर आकर सोये होंगे।
तुम अपने जिगर पर हाँथ रख के पूछना
पटरियों पर दस्तूर क्या है" मरना या सोना"
वो, वो लोग थे जो मरने का जरिया ढूंढने आये थे।
जिंदा लाश थे मौत की गोद मे सोने आये थे,
मुफलिसी के मारे वो लोग, मुफ्त में मरने आये थे
कान खोल कर सुनो लो, खबर बेचने वालों,
वो अधमरे लोग, पटरियों पर सोने नहीं आये थे।