कॉफ़ी कप
कॉफ़ी कप
टेक लगाए हूँ बालकनी की रेलिंग से
हाथ में कॉफ़ी का कप है
और एक ग्रैंड अपार्टमेंट व्यू..
लेकिन मेरी आँखो केे सामने
बस धुंधलाता अमीर आसमान है
और नीचे रेंगती गरीबी,और कुछ नहीं
तुम्हे याद है ना !
पिछली साल उस पार्क में बैठ कर,
तुमने इस बालकनी की तरफ इशारा किया था
सर्द कोहरे को चीरते हुए तुम
मेरे लिए एक कुल्हड़ में गर्म चाय लाये थे।
और मैं, सारा वक्त कॉफी की ज़िद करती रही थी।
तुम मुस्कुराते रहे बिल्कुल बच्चों की तरह,
तुमने यहाँ वहाँ की बातों की,
सुई से सगाई तक
और प्लाट से पेंटहाउस तक
नीले रंग की शर्ट और माँ के
हाथ के बने हुए उस स्वेटर में
तुम बहुत आसान से लग रहे थे,बहुत सादा।
बहुत बेतरतीब
तुम्हारी आँखों में अजीब चमक थी
तुम्हारी बातों में हाजरों सपने थे
ठिठुरते होंठों से, तुम अपनी चाय
बहुत स्वाद से पी थी।
और मैं इलाइची की तेज खुशबू में
भी नुक्स निकालती रही,
मैने कहा था,"चाय में गरीबी की बू आती है
"।
शायद आज भी तुम
चाय उतने ही स्वाद से पीते होगे।।
शायद आज भी तुम
बेतरतीब, बिखरे बिखरे मासूम लगते होगे।
शायद आज भी तुम
दूसरों की गलती छुपाने के लिए
वैसे ही मुस्कुरा देते होगे।
मुझे अफसोस है
मैं क्यों नही जान पायी
उस दिन तुम्हारी मुस्कुराहट का राज़।
तुम्हारे साथ चाय की चुस्कियों का
अहसास नही ले पायी।
आज इस बालकनी की
रेलिंग से ऊपर एक खुला आसमां है
ओर नीचे जमीन पे
बिखरी पड़ी है लोगो की आम जरूरतें।
आज इस कॉफी कप में रुआब ओर अमीरी
की बू आ रही है।
आज मैं उस सर्द कोहरे को,
चीर कर पार्क के,
उसी बैंच की तरफ इशारा कर रही हूँ
कि काश तुम वहीं बैठे हो,
कि काश तुम वहीं दिख जाओ ,
वैसे ही मासूम, वैसे ही सादा, मुस्कुराते हुए।
मेरे अपार्टमेंट की तरफ इशारा करते हुए ।
बस एक बार चले आओ
मुझे तुम्हारे साथ वो
इलाइची वाली चाय पीनी है
चाहो तो तुम इसे मेरी
आखिरी ख्वाहिश ही समझ लेना