अनंत से लॉक डाउन तक
अनंत से लॉक डाउन तक
क्या लॉक डाउन के वक्त के कायदे बताऊं मैं?
या अकेले रहने के तुमको फायदे गिनाऊँ मैं ?
या फिर बताऊं तुमको हर दिन की ढेरो मशक्क़त
या जली हुई उंगलियों के छाले दिखाऊँ मैं ?
कैसे जताऊं तुमसे मैं अपनी नाराजगी,
कैसे सुनाऊ तुमको कहानियां बेकार की
कहीं कभी तो घण्टों आईने से बात होती है
कभी चाभियों से खेलता हूँ अपनी ही कार की
इन दरवाज़े के जिस्म में कितने सुराख हैं
और खिड़कियों के कब्जे, तुमको दिखाऊँ मैं।
गिरे कपड़ो को खूंटी पे कोई टांगता नहीं है
कप कितने भी तोड़ो, कोई डाँटता नहीं है
बेखबर टी वी पर चींखती रहती है खबरें
और खीज के रिमोट कोई मांगता नहीं
बेफिकर सा ऊंघता है दिन भर मेरा होश ये
और कोई बताए ,नींद को कैसे सुलाऊँ मैं?
न आती है किचन से कोई महक खुद-ब-खुद
न बरतन ही धूल जाते हैं सिंक से अपने आप,
सुनी नहीं बच्चो की चींखें, बूढ़ों की खांसी
न चूड़ी की खनखन न पायल की थाप
कुछ लोग जी रहे हैं कुछ महीनों की क़ैद में
अब पागल हो रहा हूँ और क्या बताऊँ मैं।