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Vivek Agarwal

Romance

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Vivek Agarwal

Romance

ग़ज़ल - ये मुमकिन नहीं है कि वो बे-ख़बर है

ग़ज़ल - ये मुमकिन नहीं है कि वो बे-ख़बर है

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ये मुमकिन नहीं है कि वो बे-ख़बर है।

तो क्या मैं ये समझूँ कि वो बे-जिगर है।


जवानी की होती है सबकी कहानी,

बड़ी खूबसूरत सी नाजुक उमर है।


बुरा मर्ज़ है इश्क़ का तुम समझ लो,

दवाएँ दुआएँ सभी बेअसर हैं।


मोहब्बत की राहों पे काँटे ही काँटे,

बड़ी मुश्किलों से भरी ये डगर है।


अकेले अकेले चले जा रहे हैं,

न मंज़िल न रहबर ये कैसा सफ़र है।


नहीं कोई क़ीमत यहाँ आदमी की,

अँधेरों में डूबा ये कैसा नगर है।


है मुश्किल बड़ा रोज जीना हमारा,

भले हम-सफ़र वो नहीं हम-नज़र है।



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