नियति
नियति
नौकरी मुझे किसी वस्त्र समान लगती हैं
इंसान रोज पहनता हैं मेहनत करता हैं
पसीने में सींचता हैं।
जब तक तुम इस वस्त्र को धारण किये रहते हो
हर व्यक्ति तुम्हे देखता हैं सम्मान की नजर से
जिस दिन तुम उतार फेको इस दकियानूसी कपड़े को
लोग तुम्हारी इज्जत करना छोड़ देते हैं
बनने लगती हैं कई धारणाएँ तुम्हारे विपरीत
वक़्त के काटे इम्तेहान लेते हैं तुम्हारे
यह हैं नौकरी का कपड़ा जब इसे उतार फेंको
नियति, अब तुम मुझे हवस की नजरों से ताकोगे।