एक प्याला चाय
एक प्याला चाय
चाय में घुली
चीनी सी मीठी बातें
बिस्कुट सी कुरकुरी
आ जाती हैं होंठो पर
तैरती रहती हैं कमरे में
कभी खिड़की से झाँकती
धूप को देखती
सरियों पर बैठकर
तितलियों संग मुस्काती....
कभी पलंग पर लेट अलसाती
तकिए के गिलाफ को देख
शरमाती
कही-अनकही मन की बातें
उठती हैं चाय के प्याले से
गर्म भाप की उष्मीय
आत्मीयता के साथ....
एक-दूसरे की आँखों में झाँकती
कुछ मीठी सी शिकायतें
कुछ प्यारे उलाहने
और ढ़ेर सारा अपनापन
एक साथ का आश्वासन
एक प्याला चाय में...
अपनी कहना
कुछ तुम्हारी सुनना
नयी बातें, कुछ पुरानी यादें
थोड़ा सा प्रेम हवा में
कुछ प्रीत भरी मन में
सुबह का नारंगी उजाला
साँझ का सुरमई झुटपुटा...
आज बाँटते हैं आपस में
मुस्कुराहटें, कुछ
खिलखिलाना,
प्रेम की ताज़गीभरी मिठास
भीतर उतारते हैं
कड़वाहट को
चायपत्ती की तरह
प्याले में ही छोड़ देते हैं
आओ न प्रिय साथ बैठकर
एक-एक प्याला
गर्म चाय पीते हैं....