अकेली राहों में
अकेली राहों में
छोड़ गए हमको वो अकेले ही राहों में
चल दिए रहने वो गैर की पनाहों में,
शायद मेरी चाहत उन्हें रास नहीं आयी
तभी तो सिमट गए वो औरों की बाँहों में,
ना जाने जिंदगी किस कदर उड़ी हवाओं में
हम मिले तो मिले सिर्फ नफ़रत भरी पनाहों में,
गैरत भी हैरत भी हुई हर दिल भरी निग़ाहों में
पूछ ना कभी ये दिल उनसे जिन्हें चिंता थी गवाहों की,
हम भी ना सोचे कभी की लोग मिलेंगे सेहराओ में
जरा जरा सा बात पर टूटती कसमें इन भरी फिज़ाओं में,
ये दिल कभी ना तू प्यार कर इस जहाँ की वादियों से
लोग मिलेगें तुझको नफ़रत भरी पेड़ की डालियों से..