अंध विश्वास पर भूत जगे है
अंध विश्वास पर भूत जगे है
भूत के नाम से सहमे यहाँ मजबूत घर वाले हैं
बिना अक्षर वाले बने ओझा संग मतवाले है
लिए जन्म, मृत्यु की बायोडाटा नेट फेल किये है
बैठ महिलाओं संग कई गैंग अपने फिट किये हैं
जीते को सुख नहीं मरते इंसान को भूत बताते है
अन्धकार को यहाँ कई ओझा उजाला कहलवाते है
दारु, गांजा, फांग साथ कई चीजे मंगवाते हैं
खुद पीकर मरने वाले इंसान को भूत प्रेत बताते है
जिस घर में डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, सिपाही हुए है
लगता है ऐसे ही पढ़े लोग इसके चक्कर में पड़े हुए
विज्ञान को झूठा साबित करने में महात्मा लगे हुए है
पैसे के नाम पर महिलाओं को बच्चा भी पैदा करवाने पर अड़े हैं
कई महलों कई घरों को भी भूत खाना कहते है
महिलाओं को अपने जाल में फंसाये रहते है
जिसके घर में खुद बच्चे खाने को मरते है
वहीँ ओझा बनकर सभी को सरेआम लूटते है
जो बचपन में बदमाश, दारूबाज और लुटेरा होता है
वहीँ ओझा बनकर सबके घरों का पर्दाफाश करता है
हर घरों में व्याप्त अंधविश्वास से सभी परे है
ओझा के चक्कर में पड़कर खुद लाश बने है
जहाँ शिक्षित परिवार है वहाँ ही भूत प्रेत व्याप्त है
सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे भूत प्रेत में विश्वास किये है
भूत वाली बातों से अब सब को डर लगता है
शमशानों में मुर्दे पर ही इंसान तो काम करने लगे है
सच्चाई कहते कहते कवि सुनील यादव रो पड़ा है
अब तो भूतों के नाम से कलम भी रुक पड़ी है
वैज्ञानिकों की बातों से दुनिया अपरिचित हुई है
बिना अक्षर वाले ओझा विश्वास से परिचित हुए है