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Sunil Yadav

Abstract

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Sunil Yadav

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मेरे पल को उड़ाया

मेरे पल को उड़ाया

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कैसा हवा का झोका है आया 

मेरे सुनहरे पल को है उड़ाया

हिन्दी हम जान नही पाते

इंग्लिश को हम यूँही पहचान जाते 

बदले दौर में ना कोई ठौर ठिकाना

प्रिये सब है बदलते दौर के बेगाना 

भूल चुके है अपनी प्यारी संस्कृति

गीत गाने को है हम इंग्लिश वाली

कैसा ये रूप बनकर है आया 

मेरे जमाने पर सदा है छाया 

जो खुशिया इस युग में मिली थी मुझे

वो पागल इंग्लिश के युग ने ली खुद सधी


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