वीरों की गाथा
वीरों की गाथा
धरती गगन से सलाम भेजता हूँ,
पूरे देश का पैग़ाम भेजता हूँ,
आज इस महफिल में वीरों की गाथा सुनाता हूँ।
खुनों से लथपथ धरती माँ को सिंचे,
बलिदानों से किया देश का हिफाजत,
नहीं कोई आपसी भेद-भाव था,
एक दूजे के लिए लड़ते थे।
कितनों ने सिनें पर गोलियाँ खायी,
कितनों के उपर कोड़े बरसे,
कितनों को फाँसी मिली,
कितनों को आजीवन कारावास।
फिर भी डटे रहे आखिरी साँसों तक,
छूट गया देश दुश्मनों के चंगुल से,
वीरों की जितना भी कहूँ गाथा,
यह गाथा कम है।