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लहू

लहू

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सैनिकों की एक डोली चली है,

परिंदो की एक बोली चली है।

उड़ चल इस जहाँ से,

जमाने से एक फितरत की चली गोली है,


इस आजादी के परिंदो को भूली है,

जिसने कभी अपने लहू की होली खेली है।

इस जहाँ से एक ज़माना है,

जमाना ही जमाने का दीवाना है।


पल भर की दीवानगी,

जरा विरो में रमा लो,

उम्र भर का सितम सहा जिसने,

जरा याद कर लो उनको ।


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