'क्यूँ खो दिया तुम्हें'
'क्यूँ खो दिया तुम्हें'
कितना चाहा तुमने मुझे
चाहत की हद से बढ़कर
प्रीत की रीत से अन्जान
तिरस्कार करती रही मैं,
हर तरकीब लगाकर देखी
मेरी चाहत को रिझाने
कितना ज़लील किया मैंने
पर तुम हार न माने,
एक दिन मैंने कहा ये तुमसे
क्या कर सकते हो बोलो
तुम भी हँसकर इतना बोले
जान मेरी जो बोले,
मैंने कहा कूद जाओ इस
पानी से लबालब कुएँ मैं
एक पल भी सोचे बिना
जलसमाधि ले ली तुमने
मैंने सोचा तरवैये तुम
निकलोगे पल भर में
आधा घंटा बैठी रही पर
तुम रुठे यूँ मुझसे,
क्या कर दिया मैं पगली
अब ढूँढूं दर ब दर मैं
साया भी ना दिखे मुझे अब
पागल दीवानी फिरुं मैं
जान न पायी सच्चे प्यार को
तरसूँ अब मैं पल-पल,
क्यूँ अक्सर ये हो जाता है
अपना कोई जब होता है
बेहद करीब हमारे
तब बहुत सारी बातें है एैसी
कहना हम भूल है जाते
क्यूँ उसके दूर जाते ही
वो अनकही सब बातें
याद आती है हौले-हौले
जो हम कह ना पाये,
किसकी खता समझे इसे
जब कोई पास होता है
तब परवाह कहाँ होती है
दूर जाते ही सब उसके
सब साफ़ दिखाई देता है,
कर लो कद्र जो है करीब
पास है, साथ है तुम्हारे
फिर दबे पाँवों चलकर
सिर्फ़ याद आती है प्यारे
कुछ नहीं बचता ज़िन्दगी में
कहने को, ना सुनने को,
देखो मेरी हालत यारों
सबक ये तुम भी ले लों
पहले प्यार से ज्यादा
कोई ना चाह सकता है हमको॥