एक सलाम सैनिकों के नाम
एक सलाम सैनिकों के नाम
वह निकल पड़े थे वीर बड़े
भारत माता के सिपाही थे।
कारगिल विजय की गाथा के,
वह आल्हा ऊदल से भाई थे।
लहू से विजय के दीप जलाते,
शत्रु के घर, शत्रु को सुलाते।
वह घन घन घोर घटा से छाये,
बिजली से कड़के शत्रु भरमाये।
रणचण्डी सम जब कालमुख खोले,
अवनी पर शत्रु के रण्ड मुण्ड डोले।
नहीं रुकते वीर, समर था प्रबल,
ऊंचे पर शत्रु फिर भी था विकल।
झट उड़े चोटी पर अरिहंत बने,
पल में शत्रु सब निर्जीव करे।
दस दस को एक ने मारा था,
ऐसा प्रताप तुम्हारा था।