अंतराल
अंतराल
हे पथिक किस कारण चलते,
किस हेतू करते नित्य कर्म,
रुको प्रकृति पूछ रही है,
अनुत्तरित तुमसे प्रश्न सरल,
जग की सरल अवस्था तुमको,
क्यों दुष्कर प्रतीत हुई,
हथियारों की मची होड़,
जीवन की गति क्यों क्षीण हुई,
क्यों सज्जनता के पथ पर तुम,
दो पल भी ना चल पाते हो,
अपनी कुटिल अवस्था से,
दयनीय अवस्था पाते हो,
रह रह कर उठती टीस सदा,
जीवन में विष को घोला है,
कर अनर्थ मानवता के प्रति,
मानव के स्वप्न को तोड़ा है,
तुम्हारा अस्तित्व क्षणिक मात्र,
बन बूँद धरा में खोना है,
पाकर सृष्टि के तत्व अनन्त,
फिर धरा में एक बिछोना है,
किस लिए गुमान करते "शून्य"
किस लिये विरह में तपते हो,
लिये शून्यता का भाव मूर्ख,
क्यों शिखर की सीढ़ियां चढ़ते हो,
आज पुकार है इस पथ पर,
एक पल ठहर कर रुकना होगा,
जीवन को सुरभित करने को,
मंथन फिर से करना होगा,
सहज राह की डगर कठिन हो,
पर मंजिल का पथ प्रशस्त रहे,
कर्म की राह के हम अनुगामी,
साँसों की दुनिया विरक्त रहे,
पलप्रतिपल कोई है जग में,
मानव को समझाता है,
हमारी बनी श्रृंखलाओं में,
हमको कोई नचाता है,
क्यों नहीं सोचते मूर्ख बताओ,
किस संशय में जीवन जीते हो,
इशारों की दुनिया को समझो,
किसलिए प्रलय को पीते हो,
एक पल है दुनिया का जीवन,
एक पल की यह यारी है,
दो साँसों की बीच के मग में,
जीवन की होशयारी है।