दीया जलाना होगा
दीया जलाना होगा
मैं मानव हूँ, मानवता का दीया जलाने आया हूँ,
धरती तेरे आँचल में मैं फूल खिलाने आया हूँ।
इक अंधियारा सा बढ़ आया देखो मेरे आँगन में,
दीप जलाओ दीप जलाओ मैं ये कहने आया हूँ।
तूफानों की घड़ियां हैं डटकर हमको चलना है,
नाविक तेरी पतवारों को दीया दिखाने आया हूँ।
किसने कह दी रात अंधेरी किसने सूरज झुठलाया,
रोशन होते सपनों को मैं फिर चमकाने आया हूँ।
मैं तो एक पतंगा हूँ जीवनभर मुझको लड़ना है,
मेरी आँखों में सूरज है मैं तुम्हें उठाने आया हूँ।