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Vikash Kumar

Others

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Vikash Kumar

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मौन की शक्तिपूजा

मौन की शक्तिपूजा

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मौन को ईश्वर चुना है,

बोलने पर पहरा घना है,

प्रश्न से खतरा बड़ा है,

तोड़ना अब परम्परा है।


प्रश्न को क्यों तोलते हो,

अनुत्तरित- क्यों डोलते हो,

ना जानना स्वीकार कर लो,

मूलता का विचार धर लो।


शक्तियां जिम्मेदारी बनेंगी,

खुशहालियाँ सबको मिलेंगी,

भगवान का न व्यापार होगा,

हाँ यही तो प्यार होगा।


जग ये देखो जल रहा है,

मानव मानव को छल रहा है,

प्रश्न पर गर्दन रखी है,

उत्तरों पर बाजी लगी है।


जो भी देखो चुप रहेगा,

ईश्वर का प्रतिरूप होगा,

बोलना गुस्ताखियाँ हैं,

जान की हाँ बाजियां हैं।


ईश्वर देखो चुप रहा है,

तभी तो वह पुज रहा है ,

बोल देगा खुदा जिस दिन,

खुदा ना होगा खुदा उस दिन।


मानव सेठों की हार होगी,

सत्ता जो है लाचार होगी,

खुदा की पूजा छोड़ देंगे,

सेठ ही खुदा को तोड़ देंगे।


खुदा को फिर झुकना पड़ेगा,

मरना या चुप रहना पड़ेगा,

मानव में शक्ति बड़ी है,

उसने खुदा की चुप्पी चुनी है।


मौन पर दुनिया खड़ी है।

ढकोशलों की कारीगरी है,

मूर्ख जग को बुन रहे हैं,

गरीबी की रूई धुन रहे हैं।


मकड़जाल में फँस रहा है,

गरीब है जो डर रहा है,

मुसीबतें धर कर रहेंगी,

शक्तियां छलती रहेंगी।


तुम भी अब चुपचाप रहो जी,

भगवान से कुछ सीख लो जी,

चुप रहने का इनाम बड़ा है,

भगवान भी पुजता रहा है।


रात देखा स्वप्न भारी,

प्रश्न पर थी पहरेदारी,

ईमानदारी जकड़ी पड़ी थी,

बेईमानी जिद पर अड़ी थी।


मानवता कराह रही है,

सच्चाई दुम हिला रही है,

झूठ का सीना तना है,

भृष्टता का ताना बुना है।


रोज की बाजीगरी है,

संसदों में तनातनी है,

शाम को जाम खुलेंगे,

दिल खोलकर वो मिलेंगे।


गरीबी पर बहस भारी,

किसकी कितनी हिस्सेदारी,

देश आगे बढ़ रहा है,

गरीब फिर क्यों धँस रहा है।


दिल्ली में है मौजमस्ती,

और गाँव में मलीन बस्ती,

खाई है ये बढ़ रही है,

 कस्ती विकास की चल रही है।


युद्ध का सामान सजा है,

चन्द लोगो पर खतरा खड़ा है,

विश्वयुद्ध की तैयारी है,

रोटी यहाँ किसको मिली है।


भूख को अब डर दिखाओ,

रोटी न दो उनको लड़ाओ,

आदमी फिर लड़ता रहेगा,

साँचों में फँसता रहेगा।


देश देश को तोड़ता है,

अपना भाग्य खुद फोड़ता है,

एक झोली भर रहा है,

गरीबी के खून से फल रहा है।


अत्याचारी की बात न करो तुम,

जुर्म सह कर आह न करो तुम,

नागरिक सच्चे रहोगे,

देशभक्ति के पुतले रहोगे।


देश ऐसे ही बढेगा,

आदमी आदमी पर चढ़ेगा,

नीचे वाले पर लगाम रहेगी,

ऊपर वाले की जय होगी।


तुम बोलते हो सब समान है,

यहाँ आदमी पर लगाम है,

सरकार का है बोलबाला,

गरीब का छीना निवाला।


ईमानदारी मरती रही है,

भ्रष्टता सजती रही है,

हर ओर जय जय कार है,

सरकारों की यही मार है।



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