मजदूरों का कारवाँ
मजदूरों का कारवाँ
मजदूरों की बस्ती में सब उखड़ा उखड़ा रहता है,
शहर चमकता रहता है और गाँव उजड़ा रहता है।
जिसने पत्थर तोड़ तोड़ कर रेल देश में दौड़ाई,
उसके घर तक आने का रस्ता क्यों उखड़ा रहता है।
कितने महल दुमहले उसकी बाजू के बल टिके हुए,
छप्परा टूटा टूटा है और दर पर कपड़ा रहता है।
देखो कितने पकवानों से थाली उनकी भरी हुई,
वही अकेला ऐसा है जो भूख से लड़ता रहता है।
रात अंधेरी काली देखो फिर से बैरी घिर आई,
सब तो घर में बैठे हैं वह दर दर फिरता रहता है।
