STORYMIRROR

Vikash Kumar

Tragedy

3  

Vikash Kumar

Tragedy

मजदूरों का कारवाँ

मजदूरों का कारवाँ

1 min
226


मजदूरों की बस्ती में सब उखड़ा उखड़ा रहता है,

शहर चमकता रहता है और गाँव उजड़ा रहता है।


जिसने पत्थर तोड़ तोड़ कर रेल देश में दौड़ाई,

उसके घर तक आने का रस्ता क्यों उखड़ा रहता है।


कितने महल दुमहले उसकी बाजू के बल टिके हुए,

छप्परा टूटा टूटा है और दर पर कपड़ा रहता है।


देखो कितने पकवानों से थाली उनकी भरी हुई,

वही अकेला ऐसा है जो भूख से लड़ता रहता है।


रात अंधेरी काली देखो फिर से बैरी घिर आई,

सब तो घर में बैठे हैं वह दर दर फिरता रहता है।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy