छा जाता मधुमास
छा जाता मधुमास
पीत सुमन हैं हरी चुनरिया,
धरा करे श्रृंगार !
ऋतु, मौसम सब झूम रहे हैं,
प्रेम पगा व्यवहार।
झूम रहे हैं भ्रमर कली पर,
गुंजन का है शोर !
देख धरा दीवानी को अब,
नाच रहे हैं मोर !
है पलाश भी खिला खिला सा,
मादक हुई बयार।
आज बहारें खत लिखती हैं,
जो मौसम के नाम !
सुमन, गंध दे रहे गवाही,
मदमाई है शाम !
है अनंग हर हृदय छेड़ता,
अधरों पर मनुहार।
रंग गंध जब जब बिखरे है,
छा जाता मधुमास !
विरहन के भी भाग जगे तो,
मीठी लगे सुवास !
उमग रहा है प्यार अनूठा,
बाँहें दे गलहार।
यादों के झूले लहरे हैं,
गहराई जब शाम !
अधरों ने भी गीत पढ़ा है,
आज किसी के नाम !
नयन बिछे बैठे अधीर से,
करने को सत्कार !
