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bhagawati vyas

Abstract

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bhagawati vyas

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छा जाता मधुमास

छा जाता मधुमास

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पीत सुमन हैं हरी चुनरिया,

धरा करे श्रृंगार !

ऋतु, मौसम सब झूम रहे हैं,

प्रेम पगा व्यवहार।


झूम रहे हैं भ्रमर कली पर,

गुंजन का है शोर !

देख धरा दीवानी को अब,

नाच रहे हैं मोर !

है पलाश भी खिला खिला सा,

मादक हुई बयार।


आज बहारें खत लिखती हैं,

जो मौसम के नाम !

सुमन, गंध दे रहे गवाही,

मदमाई है शाम !

है अनंग हर हृदय छेड़ता,

अधरों पर मनुहार।


रंग गंध जब जब बिखरे है,

छा जाता मधुमास !

विरहन के भी भाग जगे तो,

मीठी लगे सुवास !

उमग रहा है प्यार अनूठा,

बाँहें दे गलहार।


यादों के झूले लहरे हैं,

गहराई जब शाम !

अधरों ने भी गीत पढ़ा है,

आज किसी के नाम !

नयन बिछे बैठे अधीर से,

करने को सत्कार !


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