रोज़ बेचते ईमान देखा
रोज़ बेचते ईमान देखा
हौसले बुलंद लिए, करते जतन देखा
रूठों को मनाने का लोगों में फ़न देखा
कमज़र्फ लोगों का रोज़ मरता ईमान
थोड़े से लालच में बेचते ईमान देखा
मन को अपने ऐसे सब तरफ घुमाते
चाँद तारों से घिरा अपना गगन देखा
सरहद में जंग से जूझते हमारे सैनिक
नेताओं को सियासत करते वतन देखा
नौजवानों के यहाँ भटकते कदम देखा
बुरी संगतों में लगते यहाँ लगन देखा
हैरत में हैं अब यहाँ ये देखकर 'आकिब'
अपनी तरक्की देख दूसरे की जलन देखा।।