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Bhavna Thaker

Drama

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Bhavna Thaker

Drama

आत्मज्ञान

आत्मज्ञान

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दु:खों के ज़लज़ले को चीरता

आज ह्रदय से एक दीप जला

आँच उठी अनुगूंजी,


मन के एकतारे से

मरुथल में रमी राख से

बौनी शापित आत्मा को

लभ्य हुआ कोई ज्ञान है शायद..


परम पद पर विराजमान हे ईश

तुम्हारे आसपास रची

झिलमिलाती रोशनी के उस बिंदू के

प्रकाश पूंज की कुछ बूँद,


ज़रा थमा दो मेरी अँजुरी में

तमस के गलियारे से गुज़रते

धृणा ग्रसित आवाम से उभरकर

प्रेम की पराकाष्ठा को चुमती चलूँ...


अंकुरित होना मेरा जाना तुम्हारे द्वारा

जानूँ अब

ब्रह्माण्ड की गूढ़ क्षितिज पर ठहरे

मायावी ध्रुवों की अठखेलियाँ

शून्य से चरम तक की...


ईश को भाँपना आसान कहाँ

बस ध्यान की धूनी से

महज़ कर्ता तक पहुँच पाऊँ

तो शायद अनंत की डगर जिसे


सुर्योदय मन का लाया है आज

मणिकर्णिका की खोज तक

हज़ार दु:खों से मुक्ति पाऊँ

जो ईश तेरा आधार मिले।।


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