मैं क्या हूँ
मैं क्या हूँ
का अंशित विग्रह
ज्योति दीप्त उर जीवजगत में
स्वेदज अंडज पिंडज में
सृष्टा का असितित्व समाहित
उनमें अपना प्रश्न शोधता
आख़िर मन रे--
मैं क्या हूँ ?
जड़ जंगम स्थावर का सह
या
चेतन अवचेतन भागी
मूर्त अमूर्त प्रखर जिज्ञासाऐं
सजीव कृत
अथवा
बेसुध मानस संरचनाऐं
काल साक्षी
तुम्हीं बताओ --
इनमें से...
मैं क्या हूँ ?
शास्त्र कह रहा नश्वर सृष्टी
तो फिर मात्र
रेणु के धोरे*
या
पंचभूत का सत अवगुंठन
कुछ तो शाश्वत काल धुरी पर
जो इतिहास गढा करता है
वही बनाता
वही चलाता
वो जब चाहे
तभी मिटाता
उस अविनाशी की
सत्ता आगे
यह गहन प्रश्न-
मैं क्या हूँ ?
शब्द शब्द में
व्यक्त प्रखर हूँ
भावयत्री की
साज़ संवर हूँ
चेतनता मुक्तिबोध मय
मौन भंगिमा का
सतत्वर हूँ
गूढ चेतना का पाठन हूँ
अव्यक्त सुलेख का
व्यक्त अंकुरण
मैं तो बस
इतना ही जानूँ
गत में क्या था
और आज--
मैं क्या हूँ ?