अरमान कम हो
अरमान कम हो
ज़िन्दगी के सफर में चलो एक बार फिर
अरमानों का बोझ कुछ कम करें
वरना अरमानों का बस चले तो
ज़िन्दगी के लम्हों में और ग़म भर दे...
अरमान कम हो तो हर लम्हा
ज़िन्दगी का सुहाना लगता है
अरमान ,चाहत, ज़ंजीरों में बाँध दे कोई,
क्या हर किसी में यह दम है...
ज़िंदा है यह ख़ुशी कोई कम नहीं,
अरमान हर लम्हा बदलते रहते हैं
इस लम्हा आँखें खुली, हाथ सलामत,
यह बात क्या कोई कम है...
चले जा रहें सब अपनी ही चाल में,
रस्मों रवायतों से बेखबर
चेहरों पे लाली, आँखों में नशा,
क्या वाकई में ख़ुशी है या एक भ्रम है...
मुड़ के देखूँ तो अनकहे चेहरे, पथराई आँखें
बेजान लाशें चली जा रही हैं
मेरी चाल से चलने वालों में पाया,
कोई और नहीं सिर्फ हम ही हम हैं...