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Kapil Jain

Drama Inspirational

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Kapil Jain

Drama Inspirational

चलना ही नियति

चलना ही नियति

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एक दिन सूरज का पथ रोक के

मैंने कहा,

एक बात कहूँ

बुरा तो न मानोगे ?


क्यूँ नहीं थोडा

बैठ लेते तुम

थकते नही हो ?


कुछ देर बतिया लो

चलते बहुत हो

थक गए होगे,

न हो तो थोडा सुस्ता लो !


सूरज हंसा और बोला,

तुम्हारा शुक्रिया !

पर रुक नहीं पाउँगा,

मैने फिर से पूछा क्यों ?

सूरज क्या थकता नहीं कभी तू !


कभी नहीं चाहता तेरा मन कि,

आज घर बैठूं

थोडा सुस्ता लूँ

चलो आज छुट्टी

मै भी मना लूँ ?


कभी तो थकता होगा तू भी

अपनी इस अनवरत यात्रा से

कभी तो तेरे घोड़े भी देखते होंगे

आशा भरी दृष्टि से तेरी ओर…!

थोडा सा रुकने - सुस्ताने का

मन नहीं करता क्या ?


तेरे घरवाले कभी नहीं चाहते

के तू उनके साथ बिताये पल चार

कोई बात कहे मीठी सी,

बच्चो को करे प्यार ?


सुन के सूरज मुस्काया

और बोला

मन कि छोडो,

उसकी तो अपार है माया !


उसकी लगा सुनाने तो

कुछ नहीं हो पायेगा

इतने सालो से जो चल रहा है,

मेरा तप टूट जायेगा !


अगर मै रुक गया तो

धरती भी रुक जाएगी

रुक जायेंगे ये रात - दिन, मौसम, ऋतुये

तब तुम सब कहाँ ठोर पाओगे ?


अपने लिए नहीं

सदैव तुम्हारे लिए चलता हूँ !

सूरज हूँ मै,

चलना और जलना

यही मेरी नियति है !


हम सब को जो चलाती है,

सबकी माँ प्रकृति है !

अपनी माँँ के नियम

नहीं तोड़ सकता

कुछ भी हो चलना

नहीं छोड़ सकता...!


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