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Rashmi Jain

Drama

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Rashmi Jain

Drama

तराजू

तराजू

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कैसा है यह एक तरफ़ा तराजू 

झुके हैं देखकर के भारी बाजू 

यहां आँसू का है कोई मोल नहीं 

पैसे से बढ़कर कोई तोल नहीं। 


यहां रुपैया मुंह खोलकर है बोल रहा 

और भरोसा सहमा सा है डोल रहा 

नज़रें टिकी हैं तराजू के कांटे पर 

कभी तो इंसाफ कर सही ओर झुके। 


यहाँ धर्म के नाम पर लूट मार है 

बिकती इंसानियत भी तो कूड़े के भाव है 

कैसा यह जात पात का भेदभाव है 

क्यों नहीं आता बदलाव है।


क्या परखना चाहता है तू 

किसे आजमाना चाहता है तू 

किसी की कमज़ोरी को बतला  

किसी की कमियों को ढूंढ।


बन खुद ही सरकार 

लिए नोटों का भंडार 

नज़रों के तराजू में ना तोल  

यह जीवन का आधार। 


सच्चाई देखकर अनदेखा ना कर 

इंसान है इंसान की परवाह कर 

कहीं ऐसा ना हो 

दूसरे को परखते परखते।


जाए स्वयं को भूल 

वक्त रहते संभल 

नहीं तो कल आने वाली पीढ़ी भी 

पूछेगी यही सवाल है। 


क्यों नहीं बतलाता

तराजू सही भाव है।


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