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Prakash Chavhan

Abstract

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Prakash Chavhan

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पालव एक प्रेमाचं

पालव एक प्रेमाचं

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*पालव एक प्रेमाचं 

मनामधी असलेलं 

आपण आपल म्हणून 

सोबतीला चालवलेलं*

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*सोडतो कधी कुठे 

भावनेची भाकर 

कधी मित्रां सोबत 

कधी मायबाप भावंडात*

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*असं उशीच पालव 

छातीला लावलेलं 

जिणं पथाची सावली 

वेळोवेळी भावती* 

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*आप्तांची पालवी 

बघती आपुलकीनं 

सांगत बसती 

आपलं आपल म्हणून* 

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*अशी हिरवळीची पालव 

असती सदा भोवती 

तेथे असावं आपण 

सुंदर फुलासारखं*

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*सोडुनी पालव चारचौघात

क्षोणोक्षणीची भाकर 

मिळवून मिसळून खाण्यात 

वाटे सुखद पावलो पावली*

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*या जिणं पालव्यात 

मित्राचं आगळं स्थान 

ऊन तापलेल्या राणातलं 

धीर, सावली देणार वुक्ष*  

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*असं पालव प्रत्येकापासी 

जसं वागत तस राहतं 

अशी माय माया त्यात 

अंतःकरणासी भिडलेलं*

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*जीवनातलं असं पान

हुर्दयातलं हुर्दय तिथं 

ऋतू मधलं वसंत ऋतू 

आनंदाचच पर्व असतं*

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*जीवनसखीची जोड त्यात 

आणखीच रंग भरते 

पालव हा पालवच 

प्रेमाची शिदोरी भरतं*

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