ज़ुबां की ख़ामोशी
ज़ुबां की ख़ामोशी
"मनसकता समीआ निजा" ये फ़ारसी का 'शेर' है
अर्थ है , "जिसने ख़ामोशी इख़्तियार कर ली उसने निजात पा ली ।
वक़्त की मार कभी-कभी इंसान को कितना ख़ामोश कर देती है ,मेरे सामने की वो 'नन्हीं "सुमन" आज माँ -बाप के गुज़र जाने के बाद,चाचा-चाची ने कम उम्र में शादी कर दी, कौन ज़िम्मेदारी उठाए।
वो करीब 12 साल की होगी, शादी का मतलब ठीक से नहीं जानती होगी
सास-ससुर और पति जो उसकी ज़िन्दगी में आया भी न था ,सबकी ख़ूब सेवा करती रही, वो अपनी ज़िन्दगी में कुछ रंग भरने के ख़्याल में ख़ुशी-ख़ुशी दिन गुज़ार रही थी।
जो उम्र पढ़ने-लिखने की होती है, वो अपने उन रिश्तों को समझने में जूझ रही थी 20-25 उम्र में समझना चाहिए था।
लेकिन वक़्त ने... या चाचा-चाची ने उसको अपने भविष्य के लिए सोचने का मौक़ा ही नहीं दिया ।
आज 10 साल बाद सुमन ज़िन्दगी के उस मोड़ पर "तन्हा" खड़ी थी। अपने तीन बच्चों की परवरिश के लिए इस दुनिया और ससुराल वालों से ....जुझना था।
पति एक एक्सिडेंट में ख़त्म हो गया था, अब उसको अपनी और उन तीन मासूम ज़िन्दगी को सही तरीक़े से चलाना था।
उसकी ज़िन्दगी नीरस ,और बहुत ही जद्दोजहद भरी डगर थी ये तो वैसा ही हुआ.......
"ज़िन्दगी जब सीधे मुठभेड़ को खड़ी हो जाए तो "ख़ामोशी"मदद नहीं करती ,वो अपनी सास,और दूसरे लोगों की ज़्यादती की ज़िक्र कर भी ना सकती थी।
'सुमन सोचती के ये सब छोड़ -छाड़ कर 'चाचा या बुआ के यहां जा कर अपनी 'दो रोटी' का जुगाड़ कर ले, लेकिन उसका सबसे बड़ा बेटा जो 8 साल का था ,वक़्त से पहले समझदार हो गया था, उसने मां को समझाया आप तो वहाँ जा कर रह जाओगी, मगर ये सोचा है हम तीनों भाईयों का क्या होगा ?
हमें तो इस ज़ालिम दादी के पास ही रहना है, उस मासूम की बात सुनकर तुमने अपने क़दम पीछे खींच लिए ।
आज करीब 18 साल बाद तुम्हें देखा तो, लगा की तुमने उन नन्हों को किसी क़ाबिल बना दिया। आज वो ...
"दो वक़्त की 'रोटी 'की जुगाड़ कर लेते हैं। सुमन तुमने सास की मार और ख़तरनाक बीमारी से जुझते हुए, रात-दिन लोगों के घरों में काम कर के अपने बच्चों को बड़ा भी कर लिया और ज़माने के भटकाव से भी बचा लिया।
सुमन लगा कि ...लड़कियों की पढ़ाई कितनी ज़रूरी है, तुमने पढ़ाई पूरी की होती तो ,अपने दम पर 'बेहतर 'ज़िन्दगी दे सकती थी।
"ख़ैर अंत भला तो सब भला" ....
लेकिन शुक्र रहा कि तुम्हारी कमसिनी और विधवा होने पर भी समाज के बुरे लोगों की नज़रों से, सिर्फ उस ससुराल की वजह से तुम अपने बच्चों को इज़्ज़त से बड़ा कर पाई..
"अंत में कुछ तुम्हारी ज़ुबां की ख़ामोशी " ने तुम्हारा साथ दिया...!