Dheerja Sharma

Tragedy

5.0  

Dheerja Sharma

Tragedy

ज़िन्दगी खेल नहीं

ज़िन्दगी खेल नहीं

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बात कई बरस पुरानी है लेकिन उस घटना की स्मृति मेरे दिलो दिमाग पर आज भी अंकित है। वो हमारे कस्बे का एकमात्र डिग्री कॉलेज था। हम सब चौथे सेमेस्टर में थे। सुनयना क्लास की सबसे होशियार लड़की थी। बहुत ही मोटे मोटे शीशे वाला चश्मा पहनती। हर दम किताबों के बोझ से दबी, किताबों में उलझी हुई सी दिखाई देती। हमारी क्लास के ज़्यादातर लड़के लड़कियां उदंड किस्म के थे। 2-4 लड़कियों को छोड़ कर सब उत्पाती।

एक दिन सुनयना की तबीयत शायद ठीक नहीं थी। इकोनॉमिक्स का पीरियड खत्म होते ही वह बाजुओं में सिर दबा कर आंखें बंद कर के बैठ गयी। इसी बीच जाने किस विद्यार्थी ने चुपके से उसका चश्मा गायब कर दिया। रिसेस होने की वजह से सभी बाहर चले गए थे।

सुनयना चश्मा न पाकर परेशान हो गयी लेकिन यह सोच कर कि कोई चश्मा गलती से ले गया होगा, रिसेस खत्म होने का इंतज़ार करने लगी।

अगला पीरियड शुरू हो गया। सुनयना कुछ देख नहीं पा रही थी। पीरियड खत्म होते ही वह रुआंसी होकर चश्मा ढूंढने लगी। वह डेस्क पकड़ पकड़ कर घूम रही थी। शायद बिना चश्मे के उसे बिल्कुल भी दिखाई नहीं देता था। क्लास के लड़के ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे। कुछ लड़कियां भी उनका साथ दे रहीं थीं। सुनयना बहुत असहाय महसूस कर रही थी। वह रोने लगी। इतने में किसी ने पीछे से जुमला उछाला-- आंख की अंधी नाम सुनयना। दो चार लड़के लड़कियों के ठठा कर हंसने की आवाज़ आयी। सुनयना एक अंतर्मुखी, भावुक किस्म की लड़की थी। उसके लिए ऐसा मज़ाक सहन करना आसान न था। सुनयना की एकमात्र दोस्त उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गयी। वह नेत्रहीन की तरह चल रही थी और बेहद अपमानित महसूस कर रही थी।

वह दिन सुनयना की कॉलेज की पढ़ाई का अंतिम दिन था। वह फिर कभी कॉलेज नहीं आयी। उसकी दोस्त ने बताया कि वह डिप्रेशन में चली गयी है। क्लास के कुछ विद्यार्थी सुनयना के घर गए किंतु उसने मुँह से एक शब्द नहीं निकाला। चुपचाप शून्य में निहारती रही।

4 विद्यार्थियों को कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। अगले वर्ष पिता जी के तबादले की वजह से हम भटिंडा चले गए। लेकिन सुनयना का क्या हुआ होगा कुछ पता नहीं। मन में एक टीस उठती है कि कुछ गलत लोगों ने एक जीवन, एक भविष्य बर्बाद कर दिया।

मज़ाक वही अच्छा जो किसी को आहत न करे। आखिर ये ज़िन्दगी खेल तो नहीं !


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