आसा घर
आसा घर


आज आपसे बातें करने का मन है। पहले मैं अपना परिचय दे दूँ? मैं शालू हूँ\।शालिनी वर्मा ! उम्र 32 वर्ष। अविवाहित हूँ। ये मेरा अपना फैसला है। वैसे मुझ जैसी बदसूरत से कोई शादी करना भी नहीं चाहेगा। अगर किसी ने कर भी ली तो उसके तरस खाने का बोझ मैं जीवन भर उठा नहीं पाऊँगी। मैं अपने जीवन में खुश हूं, क्यों कि खुश रहने का निर्णय भी मेरा ही है। "आसा"(AASA) में मैनेजर हूँ और साथ ही साथ "आसा घर' की वार्डन भी। ज़्यादा पढ़ी लिखी नहीं हूं पर ज़िन्दगी ने काफी कुछ सिखा दिया है मुझे। दसवीं कक्षा पूरी नहीं कर पाई। एक आँख की रोशनी चली गयी थी न। पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। बोर्ड की परीक्षा थी मेरी। मम्मी पापा ने कहा कि जो न समझ आये वो साथ वाले दादू जी से समझ लूं। दादू ने समझाया तो अच्छे से लेकिन जो मांगा वो मैंने मना कर दिया। उन्हें बहुत बुरा लगा और उन्होंने मेरे चेहरे पर एसिड फेंक दिया। एक छोटी सी बच्ची जो स्त्री पुरुष के संबंधों को समझती भी नहीं थी, जिसके लिए हर बड़ा उसके माता पिता समान था, उसके एक इंकार की इतनी बड़ी सज़ा दी एक पुरुष ने। आप तो शायद अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते कि तेज़ाब से झुलस जाना क्या होता है। जीते जी मर जाती है वह लड़की। इस पृथ्वी पर नरक भोगती है, अपनों का तिरस्कार झेलती है वह लड़की ! मैंने भी वह सब भोगा। तिरस्कार झेलते झेलते जवान हो गयी मैं ! उस दिन शालू को तेज़ाब से झुलस जाने से भी अधिक पीड़ा हुई जिस दिन अपनी सगी बहन को पिता से कहते सुना," ऐसे चेहरे के साथ कौन करेगा इस से शादी ? अच्छा होता मर ही जाती!" सचमुच उस दिन पहली बार मर जाने की सोची। लेकिन इत्तेफ़ाक़ से उसी दिन अखबार में नीलम दीदी का फोटो और इंटरव्यू देखा। एक झुलसा हुआ चेहरा, अखबार के मुख पृष्ठ पर। वे आसा यानि एसिड अटैक सर्वाइवर आर्मी नामक संस्था की संचालिका थीं। मुझे आसा में आशा की किरण दिखाई दी और मैंने घर छोड़ दिया। पिछले 17 साल से मैं उनके साथ हूँ। और अपने आसा घर में बहुत खुश हूं। एक बात और अपने बारे में बता दूं। मुझे सजना संवरना बहुत अच्छा लगता है। झुमके पहनने का मुझे बहुत शौक है। एक ही झुमका पहन पाती हूँ क्यों कि मेरा बायां कान एसिड की वजह से गल कर गिर गया था। ऑय ब्रो नहीं हैं तो पेंसिल से बना लेती हूँ। एक आँख में रोशनी नहीं पर काजल भी लगाती हूँ। मेरे पास लिपस्टिक्स के सारे शेड्स है। अब आईना देख कर मुझे रुलाई नहीं आती। कई खूबसूरत लोगों के छिपे हुए घिनौने चेहरे देख चुकी हूं।इसलिए आईने में अपना चेहरा देख कर मुस्कुरा देती हूं।
आसा में कुल तीस लड़कियाँ हैं। सब एसिड अटैक सर्वाइवर ! सब पुरुषों के अहम की शिकार हुईं , ऐसे पुरुष जो स्त्री की रिजेक्शन झेल नहीं पाए, जिन्होंने अपनी असफलता का गुस्सा एक मासूम लड़की पर निकाला।
लेकिन हम सब आत्मनिर्भर हैं। नीलम दीदी ने एक एक को ज़बरदस्त शेफ बना दिया है। हमारे बनाये बेकरी प्रोडक्ट्स विदेश तक जाते हैं। केक्स तो मैं कमाल के बनाती हूँ। खाएंगे आप? अरे! अरे! मेरे हाथ बहुत खूबसूरत हैं। आपको घृणा नहीं होगी ! वो लोग ... सिर्फ ...चेहरा बिगाड़ते हैं ...लड़की का!
डर न लगे तो आईये कभी---आसा घर !