रिश्तों में हिसाब नहीं
रिश्तों में हिसाब नहीं
" कोशिश तो कर एडजस्ट करने की ,श्रुति। ये सब अचार मैने तुम्हारे लिए डाले हैं। तुम्हें पता है न कि मैं अचार नहीं खाती।अब तो तुम्हारे अप्पा भी नहीं खाते। क्या करूँगी मैं इन सबका?" माँ मायूस हो गयी थीं।
" माँ आप भी न! आप वज़न तो देखो इन बरनियों का ! जगह नहीं है माँ।और लगेज का वेट भी बढ़ जाएगा।" श्रुति ने अचार बैग से निकालते हुए कहा।
" वेट ज़्यादा नहीं है बेटा।बस एक एक किलो के तो हैं" माँ के स्वर में मिन्नत थी।
जब से श्रुति के आने की खबर मिली ,तब से तरह तरह के अचार धो, सुखा, मसाला डाल- बस इसी में लगी थी।और श्रुति ने कितनी बेरुखी से ले जाने से मना कर दिया।
" " एक एक किलो के तुम्हारे अचार और एक एक किलो की बरनी।अगर तेल लीक हो गया न माँ, तो सारा सामान खराब हो जाएगा।ज़िद क्यों कर रही हो।संभाल कर रख लो।अगली छुट्टियों में आऊँगी ,तो सारा अचार खत्म कर दूंगी।" श्रुति ने माँ के गले मे बाहें डालते हुए कहा।
माँ मायूस हो गईं और चुपचाप अचार रसोई में रख आईं।
भरत काफी देर से माँ बेटी के बीच के वार्तालाप को सुन रहा था।उसने अचार के डिब्बे एक थैले में डा
ले और बाहर चल दिया।
कहाँ चल दिये भरत? हम लेट हो जाएंगे" श्रुति ने बैग बन्द करते हुए कहा।
"बस, अभी आया"
दस मिनट बाद भरत लौटा तो अचार के तीन डबल सीलबंद पैकेट हाथ में थे। " लो, सामान में रख लो।अब लीक नहीं करेंगे।" उसने श्रुति के हाथ में पैकेट देते हुए कहा।
" अरे! वाह डॉक्टर साब।आप के पास तो हर मर्ज का इलाज है" माँ के चेहरे पर हँसी लौट आयी।
" आपने इतने प्यार से अचार बनाये हैं।छोडूंगा थोड़े ही।" भरत अपनी सासू माँ के चेहरे पर सुकून देख कर खुश हो गया।
" लेकिन इतनी जल्दी ये किया कैसे?"श्रुति हैरान थी।
" अरे वह नुक्कड़ पर माधव डेयरी है न। बस उसी को रिक्वेस्ट की और उसने झट पैक कर दिए।वह भी डबल सील के साथ।और पता है मेरे ज़िद करने के बावजूद भी एक पैसा नहीं लिया।पता है क्या कहने लगे ?
" माँजी ने बिटिया के लिए इतनी मेहनत से अचार बनाया और हम पैक करने के पैसे ले लें।हमारे कस्बे में मायका है श्रुति बिटिया का।और रिश्तों में हिसाब नहीं चलता डॉक्टर साब!"
माँ की आँखों मे नमी तैर आयी और श्रुति फटाफट बैग खोल कर अचार रखने लगी।