युवा पीढ़ी में मानसिक तनाव
युवा पीढ़ी में मानसिक तनाव
युवा शब्द सुनते ही एक नया जोश ही उभर कर आता है। एक गर्म खून का कंपन। एक अद्भुत तूफानी ताकत बाजुओं में भी और विचारो मे भी स्पष्ट दिखाई देती है। समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण से लड़ने की क्षमता और उसे बदलने का साहस भी।
लेकिन आधुनिक युग में पाया जा रहा है कि युवा पीढ़ी अत्यंत व्यस्त और तनावग्रस्त है। जो प्रतिपल स्वयं से ही लड़ रही है। देखने में भले ही ख़ुद को आत्मनिर्भर स्वावलंबी साहसी हिम्मती दिखाती हो लेकिन वास्तविकता को कोई भी व्यक्ति नकार नहीं पाता।
युवा पीढ़ी में तनाव का सबसे बड़ा कारण एकल परिवार का होना यानी अकेलापन और दूसरा बिगड़ा रुटीन काम की व्यस्तता जिसके कारण वह खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाता। ऊपर से अब कोरोना का कहर। जॉब की अनेकानेक समस्याएं। आर्थिक समस्याएं आदि।
पहले परिवार जहां दुःख और परेशानियों को बाँट कर सुख के पल बड़ा देते थे। जहां बड़े बुजुर्गों के मार्गदर्शन से सारी समस्याओं के समाधान हो जाया करते थे। वो अब नहीं रहे।
जो युवा पीढ़ी दर में साफ दिखाई देता है। उनकी चिंता और तनाव के रूप में। कभी-कभी तो ये तनाव इतना अधिक बढ़ जाता है कि युवा आत्महत्याओं जैसी क्रियाओं को भी अंजाम देते हैं।
कहने का तात्पर्य इतना ही है कि इस मानसिक तनाव को कम करने के लिए आप अपने बड़े बुजुर्गों को समय दे उनसे अपनी समस्याओं को साँझा करे जिससे जीवन को समझने। मुश्किलों से लड़ने। अनुभवों को एकत्र करने और आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और अपनापन नेह आदि भावों से तनाव भी कम होगा।