बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य
बुजुर्गों के प्रति कर्तव्य
बुजुर्ग अर्थात् सद्भावों, सद्गुण, सुविचार, सदाचार और संस्कारों की छाया। हमारे सभी बड़े-बुजुर्ग हमसे सिर्फ प्रेम और सदाचार की इच्छा रखते हैं, साथ ही थोड़ी सी सहानुभूति और सहयोग भी। बुजुर्ग ये वही लोग हैं जिनकी छांव में हमने अपना बचपन बिताया है और जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत सी सीख जानी है। ये बुजुर्ग वही लोग है जिनके अनुभवों से सीख लेकर ही हम युवाओं ने अपने भावी जीवन की रूपरेखा मस्तिष्क के तैयार की है।
जिन बुज़ुर्गों की शरण में हम रहे, बड़े हुए, चलना सीखा, जीवन जीना सीखा, जिनके सानिध्य से हमें जीवन में कुछ करने कुछ बनने की प्रेरणा और साहस और सहयोग मिला; उनके प्रति हमारे कुछ कर्तव्य भी बनते हैं जैसे- उनके हृदय को हमारी वजह से कोई पीड़ा न पहुंचे, उनकी दैनिक आवश्यकताओं को पूरा ध्यान, स्वास्थ्य का ध्यान, भोजन, आवास, कुछ आर्थिक सहयोग इत्यादि। लेकिन इन
में से भी सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं कुछ समय वार्तालाप कर सुख-दुःख, अनुभव, समस्याएं बाँटना, मनोरंजक पल बिताना अर्थात् कुछ समय बुजुर्गों के साथ बिताना भावात्मक जुड़ाव महसूस करना और कराना सबसे ज्यादा प्रभावशाली और जरूरी होता है।
कहते है गूगल ऐसा एप्लिकेशन है जिसमें सभी समस्याओं का समाधान निहित है लेकिन जीवन से संबंधित जो हल और अनुभव बड़े बुजुर्गों के पास हैं वो गूगल के पास भी नहीं।
कहने का तात्पर्य इतना ही है कि अपने घर के बड़े बुजुर्गों का पूरा ख्याल रखें, जिन्होंने बचपन से आपको बहुत कुछ दिया आपकी हरेक इच्छा और आवश्यकता पूरी करने की पूरी कोशिश की आप भी उनकी सभी जरूरतों और खुशी-ख्वाहिशों का ध्यान रखें। साथ ही बीमारी में साथ और प्रतिदिन थोड़ा समय उन्हें अवश्य दें जिन्होंने अपनी जवानी आपकी जरूरतों और इच्छाओं के लिए कुर्बान कर दी।